TCS Deployment Policy : भारतीय आईटी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी Tata Consultancy Services (TCS) ने अपने कर्मचारियों के लिए एक नई और कड़ी कार्यनीति की घोषणा की है। कंपनी अब साल भर में कम से कम 225 बिलिंग डे यानी वर्किंग डेज़ की उम्मीद कर रही है और बेंच टाइम (प्रोजेक्ट के बिना समय) को 35 दिनों तक सीमित करने का फरमान जारी कर चुकी है।
TCS के इस नए नियम ने कंपनी के हज़ारों कर्मचारियों के बीच हलचल मचा दी है। आइए विस्तार से समझते हैं कि यह नीति क्या है, इसका कर्मचारियों और कंपनी दोनों पर क्या असर पड़ेगा, और इससे आईटी इंडस्ट्री में क्या संकेत मिलते हैं।
क्या होता है ‘बिलिंग डे’ और ‘बेंच टाइम’?
आईटी सेक्टर में ‘बिलिंग डे’ उस दिन को कहा जाता है जब कोई कर्मचारी किसी क्लाइंट प्रोजेक्ट पर काम कर रहा होता है और उसके नाम पर कंपनी क्लाइंट से चार्ज कर सकती है। इसका मतलब है कि कर्मचारी प्रत्यक्ष रूप से कंपनी के लिए रेवेन्यू जनरेट कर रहा है।
वहीं ‘बेंच टाइम’ वह समय होता है जब कोई कर्मचारी किसी प्रोजेक्ट से हट चुका होता है और नए प्रोजेक्ट की प्रतीक्षा में होता है। इस दौरान कर्मचारी को सैलरी तो मिलती है, लेकिन कंपनी के लिए कोई प्रत्यक्ष आय नहीं होती।
225 बिलिंग डे का टारगेट – एक सख्त लेकिन रणनीतिक कदम
TCS ने अपने कर्मचारियों से कहा है कि वर्ष में कम से कम 225 दिन तक क्लाइंट बिलिंग पर काम करना अनिवार्य होगा। इसका अर्थ है कि कर्मचारियों को अब पहले से कहीं अधिक समय तक सक्रिय प्रोजेक्ट्स पर काम करना होगा।
मान लीजिए कि एक साल में औसतन 260 वर्किंग डे होते हैं (सप्ताहांत और छुट्टियों को हटाकर), तो 225 बिलिंग डे का मतलब है कि कर्मचारी को लगभग 85–90% कार्यदिवसों में प्रोजेक्ट में जुड़ा रहना पड़ेगा।
बेंच टाइम केवल 35 दिन – नौकरी पर मंडराता दबाव?
कंपनी ने यह भी साफ कर दिया है कि कोई भी कर्मचारी अधिकतम 35 दिनों तक ही बेंच पर रह सकता है। अगर 35 दिन के भीतर उसे कोई प्रोजेक्ट नहीं मिला, तो उस पर “फिट फॉर रिडिप्लॉयमेंट” या अन्य प्रक्रियाओं के तहत कार्यवाही हो सकती है।
इसका मतलब है कि बेंच पर बैठे कर्मचारियों को अब जल्द से जल्द नया प्रोजेक्ट ढूंढना होगा। पहले बेंच टाइम की कोई सख्त समय सीमा नहीं होती थी, लेकिन इस नए नियम से कर्मचारियों में अनिश्चितता और चिंता बढ़ना लाज़मी है।
क्यों उठाया गया यह कदम?
TCS जैसे बड़े आईटी संगठन के लिए बिलेबल रिसोर्सेस का उपयोग और वित्तीय दक्षता (financial efficiency) बेहद महत्वपूर्ण होती है। कुछ प्रमुख कारण जो इस नीति के पीछे हो सकते हैं:
- मार्जिन सुधार: अधिक बिलिंग डेज़ का मतलब है ज़्यादा राजस्व और प्रॉफिट मार्जिन में सुधार।
- बेंच पर बोझ घटाना: लंबे समय तक बेंच पर रहने से कंपनी पर आर्थिक बोझ बढ़ता है।
- प्रोडक्टिविटी में इज़ाफा: कर्मचारियों को लगातार प्रोजेक्ट पर रखकर उनकी क्षमता का बेहतर उपयोग किया जा सकता है।
- नए हायरिंग में कटौती: अगर मौजूदा स्टाफ अधिक एक्टिव रहेगा, तो नई भर्तियों की आवश्यकता कम होगी।
कर्मचारियों की प्रतिक्रिया
TCS के इस निर्णय से कर्मचारियों में मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ इसे सकारात्मक पहल मान रहे हैं, जिससे काम के प्रति अनुशासन और गंभीरता बढ़ेगी। वहीं, कई कर्मचारियों को लग रहा है कि इससे नौकरी की असुरक्षा, तनाव, और वर्क लाइफ बैलेंस पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
खासतौर पर ऐसे कर्मचारियों के लिए यह नीति तनावपूर्ण हो सकती है जो किसी वजह से तुरंत प्रोजेक्ट नहीं पा पाते – जैसे कि स्किल मैचिंग में दिक्कत या क्लाइंट डिमांड में गिरावट।
क्या यह नीति केवल TCS तक सीमित रहेगी?
TCS आईटी इंडस्ट्री की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है। अक्सर इसके उठाए गए कदम अन्य कंपनियों के लिए trend-setter बन जाते हैं। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि Infosys, Wipro, HCL जैसी कंपनियां भी जल्द ही इसी तरह की कार्यप्रणालियों को अपनाएं।
इससे इंडस्ट्री में एक ‘pay-per-performance’ या ‘billable-driven job structure’ का माहौल बन सकता है, जिसमें हर कर्मचारी को हर दिन प्रोडक्टिव रहना ही पड़ेगा।
निष्कर्ष: कर्मचारियों और कंपनियों दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण संतुलन
TCS की नई बिलिंग और बेंच नीति एक तरफ कंपनी के प्रॉफिटबिलिटी और ऑपरेशनल एफिशिएंसी को बेहतर बनाने का उपाय है, वहीं दूसरी तरफ यह कर्मचारियों के लिए अनिश्चितता और प्रेशर का कारण भी बन सकती है।
एक आदर्श स्थिति तब होगी जब कंपनी स्किल अपग्रेडेशन, लर्निंग प्रोग्राम्स और इंटरनल जॉब पोस्टिंग को भी मजबूती दे ताकि कर्मचारी जल्दी और सही प्रोजेक्ट पा सकें। साथ ही एक सहयोगात्मक और संवादपूर्ण वातावरण बनाना होगा, ताकि कर्मचारी बदलाव के साथ तालमेल बैठा सकें।
TCS का यह कदम निश्चित रूप से आईटी सेक्टर के वर्क कल्चर को बदलने की दिशा में एक बड़ा संकेत है।